कविबन्धु द्वय‘राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त-संतकवि सियारामशरण गुप्त’ साहित्य (बौद्धिक संपदा) के प्रकाशनाधिकार(कापीराइट) होल्डर पारिवारिक फर्म ‘साहित्य-सदन’ है।
इसी फर्म से सियारामशरण गुप्त जी की सभी पृथक-पृथक कृतियाँ का संकलन सियारामशरण गुप्त रचनावली- ५खंड(ROC संख्या: L-14358/94) प्रकाशित किया है।
इस रचनावली में बालोपयोगी निम्न उत्कृष्ट कहानियां प्रकाशित हैं:-
(१)काकी(इसे पाठ्यपुस्तकों में पढ़ाया जाता है-नेशनल बुक ट्रस्ट नई दिल्ली ने इसका प्रकाशन अनेक भारतीय भाषाओं में किया हैै-एन.सी. ई.आर.टी.नई दिल्ली बनाई वीडियो फिल्म का प्रसारण १४ भारतीय भाषा में होता है)
(२)बैल की बिक्री
(३)कष्ट का प्रतिदान
(४)रुपए की समाधि
(५)पथ में से
(६) त्याग
(७)कोटर और कुटीर
(८)अपरिचिता
(९)प्रेत का पलायन
(१०)चुक्खू
(११)रामलीला
(१२)कृपावती
(१३)मेहतरानी
(१४) हली
(१५) मानुषी
उपरोक्त बाल कहानियां का पृथक-पृथक सचित्र मुद्रण, प्रकाशन,विक्रय एवं वितरण व्यवस्था करने हेतु हम सचेष्ट है।
बाल साहित्य प्रकाशन क्षेत्र में स्थापित,प्रतिष्ठित एवं विश्वव्यापी सेल नेटवर्क धारक सहयोगी प्रकाशक हमसे संपर्क कर सकते हैं।
दिनांक १२-१२-२०१९दिन गुरूवार राष्ट्रकवि दद्दाजी के ५५ वे निर्वाण दिवस अवसर पर प्रसंग दिनांक १२-१२-१९६४:-
दिनांक २९-३-१९६३ को सहोदर अनुज सियारामशरण गुप्त की मृत्यु हुई।
इससे पूज्य दद्दाजी को बहुत आघात पहुंचा था।
राज्यसभा का द्वितीय कार्यकाल समाप्त करके वे दिनांक ७-१२-१९६४ को दिल्ली से चिरगांव लौटे।
सात संस्मरणों वाले अधूरे संकलन को अंतिम रूप देना शुरू किया।
यह संकलन पारिवारिक प्रकाशन’साहित्य सदन’द्वारा प्रकाशित मैथिलीशरण गुप्त ग्रंथावली-१२ खंडों में प्रकाशित है।
अंततः पूज्य दद्दाजी को दिल का दौरा दिनांक १२-१२-१९६४ दिन शनिवार को पड़ा।
समय १.२७ बजे हिंदी जगत के ध्रुवतारा का अस्त हुआ।
मुझको(प्रमोद) याद है कि इससे ठीक पूर्व पूज्य दद्दाजी ने अपने सहोदर अनुज श्री चारूशीलाशरण गुप्त के पुत्र सुमित्रानंदन’दादा’को एक कागज सिरहाने से निकालकर दिया था। जिसपर उनकी अंतिम रचना निम्नवत् लिखी थी:-
प्राण न पागल हो तुम यों,
पृथ्वी पर है वह प्रेम कहाँ ?
मोहमयी छलना भर है,
भटको न अहो अब और यहाँ।
ऊपर को निरखो अब तो ,
बस मिलता है चिरमेल वहाँ,
स्वर्ग वहीं,अपवर्ग वहीं ,
सुख सर्ग वहीं,निज वर्ग जहाँ ।।
विशेष:-राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी ने ‘राष्ट्रकवि’ नाम से संबोधित कर श्री मैथिलीशरण गुप्त जी को विभूषित किया था।
‘राष्ट्रकवि’ नामक जैसा कोई पुरुष्कार राज्य/भारत सरकार की सम्मान(उपाधि) सूची में न तो कभी शामिल रहा और न ही है।
इस प्रकार श्री मैथिलीशरण गुप्त जी स्वतंत्र भारत के प्रथम-अंतिम’राष्ट्रकवि’ हैं।
संस्था के प्रतीक चिन्ह बारे में….
संस्थापक कविबंधु द्वय सियारामशरण गुप्त व मैथिलीशरण गुप्त की वर्ष १९०९ में देन है यह पारिवारिक पुस्तक प्रकाशन संस्था ‘साहित्य सदन’ का लोगो (व्यापार प्रतीक चिन्ह)।
कविबंधु द्वय द्वारा हस्ताक्षरित पारिवारिक दस्तावेज दिनांक २५-३-६० अनुसार”साहित्य सदन हम लोगों के घराने के लिए बड़े सम्मान की वस्तु है और इसको हम सभी पक्ष और विशेषकर श्री मैथिलीशरण गुप्त तथा सियारामशरण गुप्त इस संस्था को अत्यंत सात्विक एवं पवित्र वस्तु समझते हैं।”
संपादक-प्रमोदकुमार गुप्त
चिरगाँव-झांसी
द्वारा
इच्छुक प्रकाशकों
से
अपील अनुरोध:-
पारिवारिक प्रतिष्ठान ‘साहित्य-सदन’ के अपने मुद्रणालय का शुभारंभ वर्ष १९१९ में आज के दिन वसंतपंचमी को हुआ था।
हर वर्ष वसंतपंचमी के दिन बतौर शगुश यह कार्ड मुद्रित होता है।फिर देवी मां सरस्वती की पूजा अर्चना करने उपरांत मशीनरी पूजन होता है। तत्पश्चात मोतीचूर के लड्डू का प्रसाद वितरण होकर स्टाफ की छुट्टी हो जाती है।
प्रथमबार यह कार्ड आनलाइन भी किया जा रहा है।
|| अदालती सूचना ||
सूूच्य है कि हम प्रकाशनाधिकारी/कापीराइट होल्डर द्वारा न्यायालय जिला जज, झांसी में दायर किया गया स्थाई निषेधाज्ञा का वाद सं.-०४/२०१९ सेतु प्रकाशन/..-बनाम- उ.प्र. राज्य आदि ने स्वीकार कर लिया है।नोटिस दिनांक ३०/१/१९जारी करते हुए सुनवाई हेतु नियत दिनांक १८/२/१९की सूचना रजिस्टर्ड पोस्ट से न्यायालय द्वारा सचिव,माध्यमिक शिक्षा परिषद प्रशासन,इलाहाबाद आदि को तामील कराई जा चुकी है।
उक्त मूलवाद में की गई निम्न प्रार्थनाऐं मुख्य हैं कि-
१)-प्रकाशनाधिकारी/कापीराइटहोल्डर/हमसे पूर्व प्रकाशनानुमति प्राप्त किए (कराए) बिना किसीभी रचनाकार विशेषकर राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त एवं महादेवी वर्मा की पाठ्यक्रम में स्वीकृत कोईभी रचना को हाईस्कूल एवं इंटरमीडिएट की राष्ट्रीकृत पाठ्यपुस्तकों में मुद्रित, प्रकाशित,विक्रय,वितरण
आगामी २०१९-२०शैक्षिणिक सत्र(त्रों)के अपने चयनित/अधिकृत प्रकाशकों से सचिव,
माध्यमिक शिक्षा परिषद प्रशासन ना करावे।
२)-रचनाकारों/प्रकाशनाधिकारी से लिए बिना अपने चयनित प्रकाशकों को उनका प्रकाशनाधिकार(कापीराइट) देते हुए उनसे मुद्रणोपरांत मांगने पर रचनाकार/प्रकाशनाधिकारी को रायल्टी अदा करने विषयक नियम/दिशानिर्देश को अवैध और शून्य घोषित किया जावे।
चूंकि यह नियम कापीराइट विधि भावना प्रतिकूली,
प्रकाशनाधिकार(कापीराइट) हनन के आपराधिक कृत्य को प्रेरित करने वाला,रचनाकारों
(प्रकाशनाधिकारियों) के आर्थिक शोषण को सुनियोजित बढ़ावा देने वाला है।”
प्रकाशनाधिकार(कापीराइट) होल्डर फर्म सेतु-प्रकाशन/साहित्य-सदन के वरिष्ठ एडवोकेट शशिभूषण कनकने ने न्यायालय को बताया कि परिषद प्रशासन की पत्र स्वीकारोक्ति है कि-“वे बनाए प्रश्नगत दिशानिर्देश (नियम) के जरिए ही रचनाकारों की पाठ्यक्रम स्वीकृत रचनाओं का प्रकाशनाधिकार अपने चयनित प्रकाशकों देते हुए वर्ष २००० से पाठ्यक्रम स्वीकृत रचनाओं का मुद्रण प्रकाशन, विक्रय,वितरण कर एवं करा रहे हैं।”
यह भी कहा गया कि परिषद प्रशासन तथा उनके चयनित प्रकाशकों की वर्ष २००० से चली आ रही दुरभिसंधि/जुगलबंदी के फलस्वरूप हिंदी रचनाकारों को करोड़ों की हुई सामूहिक आर्थिक क्षति वसूली विधि अनुसार की जाएगी।
हाईस्कूल एवं इंटरमीडिएट बोर्ड उ.प्र.प्रयागराज आदि के खिलाफ दायर स्थाई निषेधाज्ञा मूलवाद संख्या-०४/२०१९ सेतु प्रकाशन/साहित्य सदन-बनाम-उत्तर प्रदेश सरकार आदि को वरिष्ठ एडवोकेट शशिभूषण कनकने की दलीलें प्रथमदृष्टया सही मानते हुए दिनांक २९-१-१९ को न्यायालय जिला जज,झांसी (उ.प्र.)द्वारा स्वीकार कर लिया गया है। झांसी जजशिप में इस प्रकार का यह मामला पहला है। इसमें साशय अस्थाई निषेधाज्ञा चाही गई है:- “कि प्रकाशनाधिकारी/कापीराइट होल्डर(हम) से पूर्व प्रकाशनानुमति प्राप्त किए बिना पाठ्यक्रम में स्वीकृत मैथिलीशरण गुप्त तथा महादेवी वर्मा की किसी भी रचना को पाठ्यपुस्तकों में मुद्रित, प्रकाशित,विक्रय,वितरण यू.पी.बोर्ड नातो स्वयं करे और नाही आगामी २०१९-२० शैक्षिणिक सत्र(त्रों)के अपने चयनित(अधिकृत) प्रकाशकों से करावे।”
घोषणात्मक यह प्रार्थना भी की गई है:- “कि मुद्रणोपरांत मांगने पर रायल्टी(मानदेय)का भुगतान करने(कराने) विषयक गैरकानूनी, एकपक्षीय दिशानिर्देश (नियम) को अवैध व शून्य घोषित किया जावे।” चूंकि कापीराइट विधि भावना के विपरीत तथा रचनाकारों (प्रकाशनाधिकारी) का प्रकाशनाधिकार (कापीराइट) उनसे लिए बिना अपने चयनित प्रकाशकों को देना उनके प्रकाशनाधिकार(कापीराइट) हनन के आपराधिक कृत्य को प्रेरित करने वाला तथा रचनाकारों(प्रकाशनाधिकारी) के आर्थिक शोषण को सुनियोजित बढ़ावा देने वाला है।
प्रकाशनाधिकार होल्डर(कापीराइट) फर्म की ओर से कहा गया कि यू.पी. बोर्ड के पत्राचार में यह स्वीकारोक्ति आ चुकी है कि- “विवादित प्रश्नगत दिशानिर्देश (नियम)के आधार पर रचनाकारों का प्रकाशनाधिकार वे अपने अधिकृत प्रकाशकों देते हुए पाठ्यक्रम स्वीकृत रचनाओं का पाठ्यपुस्तकों में मुद्रण, प्रकाशन, विक्रय,वितरण वर्ष २००० से कर/करा रहे हैं।
फलस्वरूप अनाधिकृत व अवैधानिक कृत्य से प्रकाशनाधिकार होल्डर(कापीराइट)फर्म को हुई/हो रही करोड़ों की आर्थिक क्षति की वसूली कार्यवाही सचिव,माध्यमिक शिक्षा परिषद प्रयागराज समेत इनके अधिकृत प्रकाशकों तथा गाइड,गैस पेपर्स,प्रश्न बैंक पुस्तक प्रकाशकों (जोकि सचिव,माध्यमिक शिक्षा परिषद इलाहाबाद के अधिकृत प्रकाशकों के परिजनों की एसोशिएट फर्में होती हैं) के विरुद्ध कानूनी कार्यवाही अमल में लाई जा रही है।
‘कविबंधु’
मैथिलीशरण गुप्त-सियारामशरण गुप्त की रचनाओं के पारिवारिक प्रकाशक
एवं
प्रकाशनाधिकार(कापीराइट)होल्डर फर्म साहित्य-सदन की प्रकाशनानुमति से
डा.अयोध्याप्रसाद गुप्त’कुमुद’के
सम्पादकत्व में
वाणी प्रकाशन,दिल्ली
द्वारा प्रकाशित।
@
साहित्य-सदन परिवार
प्रमोदकुमार गुप्त-आशीषकुमार गुप्त
चिरगाँव/झांसी।
मोबाइल: 09415073364
वेबसाइट: http://www.sahityasadansetuprakashan.com
संतकवि बापू सियारामशरण गुप्त की १२३वीं जयंती दिनांक ४ सितंबर २०१८ के उपलक्ष्य में प्रकाशित।
झांसी उ.प्र.। कविबंधु द्वय मैथिलीशरण गुप्त तथा सियारामशरण गुप्त के गृहग्राम’चिरगाँव (बुंदेलखंड)’में ११० वर्ष पूर्व सन् १९०९ में स्थापित पारिवारिक पुस्तक प्रकाशन संस्थान ‘साहित्य-सदन’के उत्तराधिकारी आशीषकुमार गुप्त एवं प्रमोदकुमार गुप्त द्वारा प्रकाशित तथा सहयोगी वितरक’लोकभारती प्रकाशन’ द्वारा सियारामशरण गुप्त मार्केट किया जा रहा निबंध संग्रह’झूठसच’
झांसी उ.प्र.। कविबंधु द्वय मैथिलीशरण गुप्त तथा सियारामशरण गुप्त के गृहग्राम’चिरगाँव (बुंदेलखंड)’में ११० वर्ष पूर्व सन् १९०९ में स्थापित पारिवारिक पुस्तक प्रकाशन संस्थान ‘साहित्य-सदन'(कापीराइट धारक/प्रकाशनाधिकारी) के उत्तराधिकारी आशीषकुमार गुप्त एवं प्रमोदकुमार गुप्त की ओर से प्रकाशित तथा सहयोगी वितरक’लोकभारती प्रकाशन’द्वारा मार्केट किया जा रहा सियारामशरण गुप्त कृत उपन्यास’अंतिम आकांक्षा’
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