गांधीवादी एवं सर्वोदयी संतकवि सियारामशरण गुप्त का जन्म दिनांक ०४-०९-१८९५ को  जनपद झांसी (बुंदेलखंड)की तहसील व परगना मोठ के  ग्राम चिरगांव में हुआ। इंनकाे उपनाम’बापू’ से भी संबोधित किया जाता था। इंनके अग्रज राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त,रामकिशोर जी व महारामदास जी तथा अनुज चारूशीलाशरण गुप्त हैं। इंन कविबंधुओं का जीवन श्रीराम व श्रीलक्षमण के आदर्शी बंधुत्व भाव से ओतप्रेत एवं अनुप्राणित है। गृहग्राम चिरगांव में साहित्य-प्रेस/साहित्य-सदन की स्थापना वर्ष १९१९ तथा गृह जनपद झांसी में मानस-मुद्रण की स्थापना वर्ष १९५४-५५ में इन्हीं  ‘कविबंधुओं’ द्वारा हुई है। सियारामशरण जी ने काव्य व गद्य  (उपन्यास, कहानी, नाटक व निबंध) विधाओं में कृतियों के के रचैएता हैं।उपन्यास कृति ‘नारी’ के लिए सुधाकर पुरुष्कार तथा महात्मा गांधी से प्रेरित होकर व प्रचार से दूर हिंदी की सेवा साधना में अपना जीवन व्यतीत करने व वैश्वणी संस्कारों तथा विश्वबंधुत्व से साहित्य को ओतप्रोत करने व काव्य,उपन्यास और निबंध विधाओं में हिंदी साहित्य का महत्वपूर्ण  संवर्धन करने व सरस्वती अंक १९१२ में पहली कविता प्रकाशित होने व वर्षों अपनी कविताओं से अलंकृत करने व दीर्घकालीन सेवाओं के उपलक्ष्य में इलाहाबाद में आयोजित सरस्वती हीरक जयंती समारोह सन् १९६२ में काशी नागरी प्रचारणी सभा, वाराणसी द्वारा सियारामशरण जी गुप्त सम्मानित किए गए। पारिवारिक प्रकाशन संस्था’ साहित्य-सदन’ द्वारा प्रकाशित/अप्रकाशित साहित्य का संपूर्ण  संकलन ‘सियारामशरण गुप्त रचनावली (पांच खंड)’ का लोकार्पण महामहिम डा.शंकरदयाल शर्मा जी के कर कमलों से हुआ। महामहिम जी ने अपने उद्बोधन में समीक्षकों के इस कथन को पुष्ट किया कि “वट वृछ के नीचे सियारामशरण पल्लवित तो हुआ किंतु उसका विकास कोई देख नहीं सका।” सियारामशरण जी कृत बाल कहानी ‘काकी’पर हिंदी व अन्य १३ भारतीय भाषाओं में साहित्य-सदन के सौजन्य से निर्मित बाल फिल्म का टी.वी. प्रसारण NCERT नईदिल्ली द्वारा किया जाता है।सियारामशरण गुप्त कृत ‘उन्मुक्त’ ग्रंथ प्रकाशन की दिनांक 17-04-1941को ही सायं करीब 5 बजे ‘उन्मुक्त’ ग्रंथ की भूमिका लेखक सहोदर अग्रज और अमरकृति ‘भारत-भारती’ के रचैयता दद्दा राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त जी राजबंदी बना लिए गए।  द्वितीय विश्वयुद्ध में आणविक अस्त्र का प्रयोग होने के पूर्व ‘उन्मुक्त’ ग्रंथ लिखा गया।
 
                   
 
बाद में जापान के दो नगरों पर अणु बम गिराए गए। इसी कारण जापान का अंत होकर युद्ध समाप्त हुआ था। वर्तमान में भी हम ऐसे युग में प्रवेश कर चुके हैं जहाँ मनुष्य का निजी शौर्य बलहीन हो चुका है। यह स्थिति अत्यंत सोचनीय है। ‘उन्मुक्त’ग्रंथ सत्य के सिद्धांत “हिंसानल से शांत नहीं होता हिंसानला” को अवलोकित कराता है। गांधी जी युद्ध विरोधी थे।उन्होंने उसी समय ब्रिटेन को शस्त्र सन्यास लेने का परामर्श दिया था। उस समय गाँधी जी की बात नहीँ सुनी गई और आज भी नहीँ कहा जा सकता है कि उनकी बात लोगों ने समझ ली है। जबकि उनके बताए नि:शस्त्र प्रतिरोध से भारतवर्ष ने राजनीतिक पराधीनता से मुक्ति पाई है। अबभी विजयी होने के प्रति सशंकित रहकर शस्त्र सज्जा की होड़ में लगे बड़े बड़े राष्ट्र उक्त सिद्धांत का अनुभव पूरी तरह नहीं कर पा रहे हैं।
    भारतवर्ष के प्रथम राष्ट्रपति डा. राजेंद्रप्रसाद जी ने अपने पत्र में उन्मुक्त कृति के रचैयता सियारामशरण गुप्त को लिखा था कि”यह ग्रंथ सिद्धात की प्रतिष्ठा करने वाला है। इसका अधिकाधिक प्रचार होना चाहिए। इसबार बीमारी के कारण जेल जाने से तुम रोक लिए गए हो।तुम्हें अभी जेल नहीं जाना चाहिए।”रचैएता ने डा.राजेंद्रप्रसाद जी को प्रत्युत्तर में लिखा कि “आपकी आज्ञा शिरोधार्य है।” इस प्रकार उन्मुक्त का रचैएता मुक्त ही रह गया। इस ग्रंथ को पटना विश्वविद्यालय द्वारा एम.ए.हिंदी की कक्षाओं के पाठ्यक्रम के रूप में स्वीकृत किया गया। ‘कविबंधुओं’ द्वारा स्थापित पारिवारिक प्रकाशन संस्था ‘साहित्य-सदन’ के  उत्तराधिकारी संचालक प्रमोदकुमार गुप्त व आाशीषकुमार गुप्त हैं।साहित्य मर्मज्ञ मुंशी अजमेरी जी छठे भाई का तरह पारिवारिक रहे। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, राष्ट्रसंत आचार्य विनोबा भावे, पं. जवाहरलाल नेहरू, नेताजी सुभाषचंद्र बोस आदि जैसे राजनेताओं का आगमन चिरगांव हुआ।चिरगांव के व्यापक पहचान और महत्व के प्रकाशित करती स्वतंत्रता सेनानी,पत्रकार गणेशशंकर ‘विद्यार्थी’ जी की निम्न पंक्तियां :-
मैथिलीशरण गुप्त की गंगा समान काव्यधारा ने,
सियारामशरण गुप्त की यमुना समान काव्यसाधना ने,
मुंशी अजमेरी की व्यक्त में अव्यक्त सरस्वती ने,
‘चिरगांव’को हिंदी साहित्य का ‘त्रिवेणी तीर्थ’ बना दिया।