‘कविबंधु’ श्री मैथिलीशरण गुप्त एवं श्री सियारामशरण गुप्त द्वारा गृहग्राम’चिरगांव’ में स्थापित पारिवारिक पुस्तक प्रकाशन फर्म ‘साहित्य-सदन(साहित्य-मुद्रण’प्रेस’)’ का संक्षिप्त इतिहास:-
1)- अपने संस्थापक द्वय पूज्य बाबाश्री दद्दा मैथिलीशरण गुप्त तथा पूज्य बापू सियारामशरण गुप्त जी की समस्त कृतियों को स्थापना वर्ष १९१९ से निरंतर अद्यतन प्रकाशित करते हुए फर्म साहित्य-सदन हिंदी साहित्य सेवारत् है। कवि गुप्तबंधु मैथिलीशरण गुप्त साहित्य तथा सियारामशरण गुप्त साहित्य का एकाधिकार प्रकाशनाधिकारी प्रकाशक तथा प्रकाशनानुमति(कापीराइट) प्रदानकर्ता ‘साहित्य-सदन’ है।
2)- महारामदास(१), रामकिशोर(२), मैथिलीशरण(३),सियारामशरण(४),चारूशीलाशरण(५) पुत्रगण सेठ रामचरण अविभाजित संयुक्त हिंदू परिवार था। इंनके मध्य स्थापना वर्ष १९१९ से वर्ष १९६० तक फर्म साहित्य-सदन(साहित्य-मुद्रण ‘प्रेस’) का कारोबार चला।
3)- पारिवारिक अचल सम्पत्ति के साथ वर्ष १९४४ में हुए बटवारा अनुसार प्रथम थोक(महारामदास)फर्म कारोबार से अलग किए गए। शेष १)श्रीनिवास पुत्र रामकिशोर,२)मैथिलीशरण ३)सियारामशरण ४)चारूशीलाशरण सहोदरों के बीच फर्म ‘साहित्य-सदन(साहित्य-मुद्रण’प्रेस’) पुनर्गठित हुई और वर्ष १९६० तक पुस्तक प्रकाशन एवं मुद्रण का कारोबार चला।
4)- कारोबार का विघटन वर्ष १९६० में वयस्क उत्तराधिकारियों की सहमति से फर्म ‘साहित्य-सदन (साहित्य-मुद्रण’प्रेस’)तत्कालीन पार्टनरों के बीच हुआ। इस अवसर पर अपने हिस्से का ₹ १ लाख १ हजार लेकर फर्म ‘साहित्य-सदन (साहित्य-मुद्रण’प्रेस’) कारोबार से श्रीनिवास अलग हुए और थोक कपड़े एवं सराफा का स्वतंत्र व्यापार करने लगे। फर्म ‘साहित्य-सदन (साहित्य-मुद्रण’प्रेस’) कारोबार में ₹ २ लाख ७६ हजार पूंजी लगी थी। चलता हुआ प्रकाशन व मुद्रण व्यापार सियारामशरण तथा चारूशीलाशरण को दिया गया। इस प्रकार इन्हें ₹ २ लाख २ हजार अपने हिस्से से से अधिक ₹ ७४ हजार मिले। यह ₹ ७४ हजार राशि मैथिलीशरण जी को सियारामशरण तथा चारूशीलाशरण जी द्वारा चुकाई जानी थी। शेष ₹ २७हजार नकद लेकर मैथिलीशरण जी ने अपने हिस्से के ₹ १ लाख १ हजार पाए।

 

 

 

 

 

 

5)- सियारामशरण, चारूशीलाशरण एवं सुमित्रानंदन के बीच वर्ष १९६० उपरांत फर्म साहित्य-सदन पुनर्गठित हुई। जोकि सियारामशरण जी मृत्यु दिनांक २९-०३-१९६३ तक पुस्तक प्रकाशन एवं मुद्रण कारोबार जारी रहा।
6)- चारूशीलाशरण एवं सुमित्रानंदन के बीच वर्ष १९६३ उपरांत फर्म साहित्य-सदन पुनर्गठित हुई। जोकि चारूशीलाशरण जी मृत्यु दिनांक २०-११-१९८२ तक पुस्तक प्रकाशन एवं मुद्रण का कारोबार यथावत् जारी रहा।इसी दौरान फर्म ‘सेतु-प्रकाशन’ गठित हुई। यह साहित्य-सदन का सहयोगी प्रकाशक है। महादेवी वर्मा की समस्त रचनाओं का संकलन’महादेवी साहित्य,खंड-३’ का एकाधिकार प्रकाशनाधिकारी प्रकाशक तथा प्रकाशनानुमति(कापीराइट) प्रदानकर्ता ‘सेतु-प्रकाशन’ है।
7)- वर्ष १९८२ में.सुमित्रानंदन एवं प्रमोदकुमार गुप्त के बीच फर्म साहित्य-सदन पुनर्गठित हुई। जोकि सुमित्रानंदन जी मृत्यु दिनांक १७-०५-१९८९ तक पुस्तक प्रकाशन एवं मुद्रण का कारोबार पूर्ववत् करती रही।
8)- वर्ष १९८९ से १९९२ तक फर्म साहित्य-सदन के प्रोप्राइटर प्रमोदकुमार गुप्त फर्म साहित्य-सदन की प्रोप्राइटर रहे।
9)- वर्ष १९९२ से २००१तक श्रीमती मीरा गुप्ता फर्म साहित्य-सदन की प्रोप्राइटर रहीं।
10)- वर्ष २००१ से फर्म साहित्य-सदन एवं सेतु-प्रकाशन के प्रोप्राइटर आशीषकुमार गुप्त दत्तक पुत्र स्व.सुमित्रानंदन गुप्त हैं तथा इंनके रजिस्टर्ड एटार्नी श्री प्रमोदकुमार गुप्त हैं।